प्रगत भई तपपुंज सही – शंका समाधान
अहल्या के इस विवेचन पर पाठकों ने जितनी प्रतिक्रियाएं दी हैं, उतनी आज तक किसी विवेचन पर नहीं मिली | यह पाठकों के जागरूक होने का संकेत है | बहुत से प्रश्न मिले हैं, उनमें उठी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास कर रहा हूँ |
अहल्या ने छद्म वेशधारी इन्द्र को पहचानने के पश्चात् भले ही जानबूझकर अथवा अनजाने में उसके प्रणय निवेदन को स्वीकार किया हो, कुछ अपराध तो अहल्या का बनता ही है | वह जानती थी कि ऋषि गौत्तम कभी भी असमय (ब्रह्म मुहूर्त में) प्रणय निवेदन नहीं कर सकते फिर भी उसने ऋषि गौत्तम का वेश धरे इन्द्र का आग्रह स्वीकार कर लिया | इसी कारण से उसे अपने पति का कोपभाजन होना पड़ा | इसके परिणाम स्वरूप वह परित्यक्ता हो गयी और एक युग तक उसे जीवन में जड़वत होकर रहना पड़ा | जड़वत होकर भी उसने अपने अपराध से मुक्त होने के लिए साधना की जो उसे परमात्मा तक ले गयी |
शास्त्रों में अहल्या को कन्या इसलिए कहा गया कि उसने कामवासना के अधीन होकर कोई कर्म नहीं किया | इन्द्र स्वर्ग के राजा थे | घर आये अतिथि का यथोचित्त स्वागत करना इस देश की संस्कृति में है | परन्तु ऋषि का वेश धरे इंद्र का ऐसा सत्कार करना उसे शापित होने की सीमा तक ले जायेगा, शायद इसका भान अहल्या को नहीं रहा होगा |
चन्द्र देव पर गौत्तम ऋषि के कमंडल की चोट से लगा दाग प्रतीकात्मक है | जो भी व्यक्ति किसी दुष्कर्म में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सहयोगी होता है, उसके चरित्र पर दाग लगना निश्चित है | यही चन्द्रमा के साथ हुआ है | पूर्णिमा के चाँद का सौन्दर्य इस दाग के कारण कुछ फीका अवश्य ही पड़ जाता है और ऊपर से कभी कभी उस पर लगने वाला ग्रहण भी उसके तेज को कम कर देता है |
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि किसी की दृष्टि में अगर अहल्या पापी भी है तो वह परमात्मा की साधना और भजन के कारण मुक्त होने की अधिकारी है | गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है –
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ||9/30||
यदि कोई दुराचारी से दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधू ही मानने योग्य है क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है |
पौराणिक कथाओं पर प्रश्न उठते ही रहते हैं। उन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने से महत्वपूर्ण है, इन कथाओं के भाव को ग्रहण करना, जिनके लिए इनकी रचना की गई है।इसलिए इन कथाओं में छिपे संदेश को पकड़ें अन्य अतिशयोक्तियों पर अधिक ध्यान न दें।
कल से नयी श्रृंखला - भक्त शबरी पर
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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