भूख -13
एक सुधि पाठक की जिज्ञासा है कि 'संग्रह सूक्ष्म शरीर का भूखा है' इसे पूर्ण रूप से समझ में नहीं आया। इसके बारे में थोड़ा विस्तार से बताएं।
विषय-भोग स्थूल शरीर के स्तर पर भोगा जाता है। उस भोग से मिले सुख-दुःख का अनुभव सूक्ष्म शरीर को होता है। जब स्थूल शरीर मर जाता है तब सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर का त्याग कर देता है, तब स्थूल शरीर को किसी प्रकार के सुख-दुःख का अनुभव नहीं होता। विषय-भोग से मिले सुख-दुःख का सूक्ष्म सूक्ष्म शरीर में ही होता है। इसी के आधार पर सूक्ष्म शरीर में ही अधिक भोग मिलने की इच्छा (वासना), विषय के प्रति आशक्ति, व्यक्ति के प्रति मोह, स्थान आदि के प्रति मोह, धन को संग्रहित करने की प्रवृत्ति आदि पैदा होती हैं। ये सभी सूक्ष्म शरीर में एकत्रित होते रहते हैं। दोस्ती के कारण अलग-अलग शरीर त्याग-त्याग रहता है।
मुख्य रूप से हम धन के संग्रह की प्रकृति को ही सूक्ष्म शरीर की भूख कहते हैं। धन कामना अनुचित नहीं है क्योंकि धन से ही हमें स्वस्थ शरीर की आवश्यकता पूरी होती है। जिंदगी की दो हकीकतों को जानते हुए भी हम अंकित बने रहते हैं। पहली हकीकत - इस जीवन में स्टूल धन का भी संग्रह किया गया है, इसे शरीर छोड़ने पर कोई भी अपने साथ नहीं ले सकता। हम भलीभाँति जानते हैं कि धीरे-धीरे हमारे द्वारा अर्जित की गई सामग्री का संग्रह कर लिया गया है, वह हमारे पूरे जीवन के लिए आत्मनिर्भर है, फिर भी हम 'और अधिक, और अधिक' की रट लांग बने हुए हैं। दूसरी वास्तविकता - धन से एकमात्र पदार्थ ही विखंडित किया जा सकता है क्रम-सिद्धांत के अनुसार भगवान ने जन्म से पूर्व ही निश्चित कर रखा है। उस प्रारब्ध से न तो रत्ती भर कम अपॉइंटमेंट है न ही मोर। फिर भी हम जीवन भर धन की तलाश और संग्रह करने में लगे हैं। यह मानसिक भूख नहीं है तो और क्या है?
मन सूक्ष्म शरीर का मुख्य अंग है, जो हमें चौरासी के चक्कर में डालता है, वह बाहर यात्रा नहीं देता। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर सूक्ष्म शरीर के सूक्ष्म कण पाए जाते हैं।
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मॉन्स्टर - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरिः शरणम् ।।